Krishna Bhajan Lyrics: Teri Maya ka तेरी माया का न पाया कोई पार
तेरी माया का न पाया कोई पार यह श्री कृष्ण जी का बहुत ही लोकप्रिय भजन है। इस भजन को अपने सुंदर आवाज से श्री रविन्द्र जैन जी ने गाए हैं। आज के पोस्ट में हम इस सुंदर भजन का लिरिक्स व वीडियो का आनंद लेंगे।
तेरे माया का न पाया कोई पार लिरिक्स व वीडियो
( तेरे माया का न पाया कोई पार – वीडियो )
ज्योति पुंज एक, गगन से, चला, धरा की ओर,
छाया था यहॉँ, पाप का, अंधकार घणकोर
ऋषि मुनि, जप तप कर जिन्हे, थके पुकार पुकार,
दुष्ट दमन को, ले रहे, व्ही, विष्णु अवतार
तेरी माया का न, पाया कोई पार
कि, लीला तेरी, तूँ ही जाने
तूँ ही जाने ओ श्यामा, तूँ ही जाने
हो … सारी दुनियाँ के, सिरजनहार
कि, लीला तेरी, तूँ ही जाने
तेरी माया का न, पाया कोई पार …..
बंदी ग्रह में, जन्म लिया और, पल भर वहॉं न ठहरा
टूट गए सब, ताले सो गए, देते थे जो पहरा
हो… आया अंबर से संदेश, मानों वासुदेव आदेश
ओ बालक ले कर जाओ, नन्द जी के द्वार
कि, लीला तेरी तूँ ही जाने
तेरी माया का न, पाया कोई पार .….
बरखा प्रबल, चंचला चपला, कँस समान डराए
ऐसे में, शिशु को लेकर कोई, बाहर कैसे जाए
हो … प्रभु का सेवक शेषनाग, देखो जागे उसके भाग
ओ उसने फण पे रोका, बरखा का भार
कि, लीला तेरी तूँ ही जाने
तेरी माया का न, पाया कोई पार ….
वासुदेव जी, हिम्मत हारे, देख चढ़ी यमुना को
चरण चूमने, की अभिलाषा, की हिमगिरि ललना को
हो .. तूने पग सुकुमार, दिए पानी में उतार
ओ छूह के रस्ता बन गई, यमुना जी की धार
कि, लीला तेरी तूँ ही जाने
तेरी माया का न, पाया कोई पार …..
नन्द के घर, पहुंचे यशोद्धा को, भाग्य से सोते पाया
कन्या लेकर, शिशु छोड़ा तो, हाय रे मन भर आया
हो … कोई हँसे चाहे रोए, तूँ जो चाहे व्ही होए
ओ सारी बातों पे, तुझे है अधिकार
कि, लीला तेरी तूँ ही जाने
तेरी माया का न, पाया कोई पार ….
लो आ गई, राक्षसी पूतना, माया जाल विछाने
माँ से बालक, छीन के ले गई, विष भरा दूध पिलाने
हो … तेरी शक्ति का अनुमान, कर न पाई वो नादान
ओ जिसको मारा तूने, उसको दिया तार
कि, लीला तेरी तूँ ही जाने
तेरी माया का न, पाया कोई पार …..
किरणावत को, लात पड़ी तो, मटकी में जा अटका
दैत्य को दूध, दहीं से नहला कर, चूल्हे में दे पटका
हो,,, फिर भी न माना बदमाश, प्रभु को ले पहुँचा आकाश
हे वहीं उसका, किया रे संहार
कि, लीला तेरी तूँ ही जाने
तेरी माया का न, पाया कोई पार ….
प्रभु भक्ति में, लीन सन्यासी, भेद समझ न पाया
जब जब प्रभु का, ध्यान किया ये, बालक ही क्यों आया
हो… जागा साधु का विवेक, शिशु में प्रभु को लिया देख
ओ अपने हाथों से, दिया रे आहार
कि, लीला तेरी तूँ ही जाने
तेरी माया का न, पाया कोई पार ….
मथुरा में तूँ ही, गोकुल में तूँ ही, तूँ ही वृन्दावन में
तूँ ही कुञ्ज, गलियन को वासी, तूँ ही गोवर्धन में
हो … तूँ ही ठुमके नन्द भवन में, तूँ ही चमके नील गगन में
ओ करता रास तूँ ही, यमुना के पार
कि, लीला तेरी तूँ ही जाने
तेरी माया का न, पाया कोई पार ….
भक्त हूँ मैं, और तूँ है भगवन, मैं नर तूँ नारायण
क्या समझूँगा, माया तेरी, मैं नर हूँ साधारण
हो,,, भगवन मैं मूर्ख नादान, तुमको तिहूँ लोक का ज्ञान
ओ तूँ ही कण कण में, समाया निराकार
कि, लीला तेरी तूँ ही जाने
तेरी माया का न, पाया कोई पार
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